Special Report: प्राइवेट हेल्थ सेक्टर को रियायतें देने पर दोबारा सोचे सरकार

Special Report: प्राइवेट हेल्थ सेक्टर को रियायतें देने पर दोबारा सोचे सरकार

नरजिस हुसैन

देश इस वक्त तीन तरफा लड़ाई का सामना कर रहा है- स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और भौगोलिक-राजनीतिक। तीसरी लड़ाई का स्तर खासा बड़ा है क्योंकि इसमें दुनिया के कई बड़े देश शामिल हैं और जिनके आपसी मतभेदों का खामियाजा भारत को मुसीबत की इस घड़ी में उठाना पड़ रहा है। लेकिन, यह तो हुई एक बात दरअसल कोरोना महामारी ने देश में सरकार और उसकी निगरानी में काम कर रहे पॉलिसी बनाने वालों पर इस सेक्टर की मौजूदा खामियों और कमियों की पोल खोल दी है।

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देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होने वाला सरकारी पैसा लगातार कम होता जा रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था के बराबर वाले देश भी अपनी स्वास्थ्य सेवाओं पर भारत से ज्यादा खर्च करते हैं। पिछले कुछ सालों से देश में स्वास्थ्य सेवाओं का जो मॉडल पैदा हुआ वह बीमा आधारित है। इस वजह से बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं से न सिर्फ कम वेतन वाला नौकरीपेशा बल्कि गरीब और पिछड़ा भी छूट गया है। यह इस मॉडल की सबसे बड़ी खामी मानी जा सकती है।

2020-21 के केन्द्रीय बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र को जो 69000 करोड़ सरकार ने दिए हैं उन्हें अगर पिछले बजट से तुलना की जाए तो यह महज 4.1 प्रतिशत मानी जा रही है। इसे अगर विभागीय स्तर पर देखा जाए तो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 65,012 करोड़ रुपए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को दिए जबकि स्वास्थ्य रिसर्च विभाग के खाते में 2,100 करोड़ रुपए आए और आयुष मंत्रालय को 2,122 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। सरकार ने जो भी थोड़ा खर्च करने की हिम्मत दिखाई तो वह प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को देखकर लगा। बाकी केन्द्र के साथ मिलकर राज्यों में जो योजनाएं चल रही हैं उनको कुछ मिला और ही उन्होंने कुछ गंवाया।

4.1 फीसद की वित्तीय बढ़त और 2020-21 के दौरान नाममात्र के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की जो संभावना दिखाई जा रही है उसे देखकर पता चलता है कि जीडीपी में स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार की भागीदारी घटी है। 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जिस 2.5 प्रतिशत जीडीपी के खर्च की उम्मीद की जा रही थी यह स्थिति इसके ठीक उलट है जो अच्छा संकेत नहीं है। हालांकि, पिछले पांच साल के बजट से अगर इस बजट की तुलना की जाए तो मालूम होता है कि सरकार ने फंड करीब दोगुने किए।

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केन्द्रीय योजनाओ को 2015-16 जहां 35,000 करोड़ रुपए मिल रहे थे वहीं 2020-21 के बजट तक यह राशि बढ़ाकर 70,000 करोड़ रुपए तो कर दी गई लेकिन, 2025 तक जो इस क्षेत्र में जीडीपी का 2.5 प्रतिशत लक्ष्य है उसे हासिल करना अभी भी मुश्किल लग रहा है। पिछले कुल सालों में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जीडीपी का सिर्फ एक फीसद ही सरकार खर्च कर रही है। अगर, सरकार यह खर्च बढ़ाती भी है तो उसका पूरा फायदा प्राइवेट हेल्थ सेक्टर को चला जाएगा क्योंकि सरकार पिछले कुछ सालों से प्राइवेट हेल्थ सेक्टर को रियायतें और सहूलतें दे रही है।

अब इस महामारी और प्राइवेट सेक्टर के रवैए से सरकार को यह सबक लेना होगा कि सबसे पहले देश में प्राइमरी हेल्थ सेंटरों की हालत को दरुस्त करें। इससे बड़े अस्पतालों में आना वाला मरीजों का बोझ काफी कम हो सकता है। क्योंकि कोरोना की रफ्तार थामने के लिए इलाज से भी पहले साफ-सफाई और जागरुकता की जरूरत है। जैसे ही इन छोटे लेकिन अपने एरिया के स्वास्थ्य के मजबूत प्राइमरी हेल्थ सेंटरों का ढांचा पुख्ता होगा वैसे ही कोरोना का संक्रमण पहले चरण में ही रुकना शुरू हो जाएगा। इससे आम आदमी की जेब पर ज्यादा बोझ भी नहीं पड़ेगा।  

अच्छा फिर एक बड़ी भारी कमी पिछले कुछ महीनों में यह भी देखी जा रही है कि कोविड-19 से लड़ने के लिए हेल्थ सेक्टर तैयार तो हुआ लेकिन उस तैयारी में उसने उन तमाम मरीजों को दरकिनार कर दिया जिन्हें इस संकट के वक्त अपने इलाज या ऑपरेशन के लिए भी अस्पतालों की जरूरत थी। 24 अप्रैल को बंबई हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका सुनते हुए अस्पतालों से यह सवाल किया था कि एक महामारी से लड़ने के लिए बाकी बीमारियों से पस्त मरीजों का इलाज कैसे होगा। कोर्ट मे तब महाराष्ट्र सरकार और केन्द्र सरकार दोनों को कोविड और नॉन कोविड मरीजों की अनदेखी न करने को कहा था।

नेशनल हेल्थ ऑथॉरिटी के आंकड़ों के मुताबिक देश के सभी प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में नॉन कोविड मरीजों को देखने की संख्या में काफी गिरावट आई है। ब्रिटिश जनरल ऑफ सर्जरी का कहना है कि भारत में करीब 71 प्रतिशत (5,80,000) तयशुदा सर्जरी कोरोना वायरस को देखते हुए 12 हफ्तों या उससे भी ज्यादा वक्त के लिए टाल दी गई है या रद्द कर दी गई है। इसमें कैंसर की 60 प्रतिशत (51,134) और हड्डी की 30 फीसद (27,740) सर्जरी शामिल हैं। अगर अब भी अस्पताल सर्जरी करना शुरू करते हैं तो इस अध्ययन का कहना है कि करीब 5,56,998 रुकी हुई सर्जरीज को करने में 93 हफ्तों से भी ज्यादा का वक्त लगेगा। ये अध्ययन ब्रिटिश जनरल ऑफ सर्जरी ने सिम्स अस्पताल, टाटा मेमोरियल सेंटर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसांसेज के एक्सपर्ट और डॉक्टरों से बात करने के बाद किया।

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27 अप्रैल को राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी देश में सुधारों की जरूरत पर जोर दिया था।हालांकि, उस बातचीत में सुधार का कोई रोडमैप तो नहीं बताया गया था लेकिन, अब यह बात केन्द्र समेत सभी राज्यों पर जाहिर हो गई है कि हमें अपने स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने की बेहद जरूरत है। सरकार को चाहिए कि स्वास्थ्य सुविधाएं बीमा रहित हो और सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का ढांचा चाहे वह प्राथमिक हो या टरशरी उस पर अब से निवेश करे, कहीं ऐसा न हो कि विकसित देशों की ही तरह भारत में भी इलाज का हकदार वही होगा जिसके पास पैसा होगा।

 

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